वर्गीज कुरियन

Verghese Kurien Biography in Hindi

जन्म: 26 नवंबर 1921

मृत्यु: 9 सितम्बर 2012

उपलब्धियां: अमूल की स्थापना, भारत में ‘श्वेत क्रांति के जनक’ के रूप में जाना जाता है

वर्गीज कुरियन भारत में ‘श्वेत क्रांति’ के जनक थे। उन्हें ‘फादर ऑफ़ वाइट रेवोलुशन’ भी कहा जाता है। उन्होंने भारत को दूध की कमी से जूझने वाले देश से दुनिया का सर्वाधिक दूध उत्पादक देश बनाने वाले सहकारी दुग्ध उद्योग के मॉडल की आधारशिला रखी थी। उनके ‘ऑपरेशन फ्लड’ ने भारत को दुग्ध उत्पादकों के सूचि में सबसे आगे खड़ा कर दिया। अपने जीवनकाल में 30 से अधिक उत्कृष्ट संस्थानों के स्थापना करने वाले डॉ कुरियन को रेमन मैगसेसे, पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

वर्गीज कुरियन
स्रोत: http://www.amul.com/m/dr-v-kurien

प्रारंभिक जीवन

कुरियन का जन्म केरल के कोझिकोड में 26 नवंबर, 1921 को हुआ था। उन्होंने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में विज्ञान में स्नातक किया और चेन्नई के ही जीसी इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। कुछ समय तक उन्होंने जमशेदपुर स्थित टिस्को में काम किया और बाद में डेयरी इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिए भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति मिलने के बाद बेंगलुरु के इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हजबेंड्री एंड डेयरिंग में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी से 1948 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था।

कैरियर

डॉ वर्गीज कुरियन वर्ष 1948 में अमेरिका से वापस भारत आकर सरकार के डेयरी विभाग में शामिल हो गए। मई 1949 में उन्हें गुजरात के आनंद में सरकारी  अनुसंधान क्रीमरी में डेयरी इंजीनियर के रूप में तैनात किया गया। इसी दौरान कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड (KDCMPUL), निजी स्वामित्व वाले पॉलसन डेयरी से मुकाबला करने के लिए संघर्षरत था। इस चुनौती से प्रेरित होकर डॉ कुरियन ने अपनी नौकरी छोड़ दी और दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करने में KDCMPUL के अध्यक्ष त्रिभुवनदास पटेल की सहायता के लिए आगे आये। इस तरह अमूल का जन्म हुआ। कुरियन का सपना देश को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर करने के साथ– साथ किसानों की दशा भी सुधारना था।

भैंस के दूध से पहली बार पाउडर बनाने का श्रेय भी कुरियन को जाता है। उन दिनों दुनिया में गाय के दूध से दुग्ध पाउडर बनाया जाता था। अमूल के सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण ये भी था क्योंकि इस तकनीक के कारण ही वो नेश्ले जैसे प्रतिद्वंदी का मुकाबला कर पाये। नेस्ले अभी तक गाय के दूध से पॉवडर बनाता था क्योंकि यूरोप में गाय के दूध का पैदावार ज्यादा है।

अमूल की सफलता से आशान्वित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने अमूल मॉडल को देश के अन्य स्थानों पर फैलाने के लिए राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन 1965 में किया और डॉ कुरियन को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। एनडीडीबी ने वर्ष 1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बन गया। कुरियन 1965 से 1998 तक 33 साल एनडीडीबी के अध्यक्ष रहे। साठ के दशक में देश में दूध की खपत जहां लगभग दो करोड़ टन थी वहीं 2011 में जाकर यह 12.2 करोड़ टन तक पहुंच गई।

वर्ष 1973 में, डॉ कुरियन ने डेरियों द्वारा निर्मित उत्पादों को बाजार में बेचने के लिए जीसीएमएमएफ (गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन) की स्थापना की और 2006 तक इसके अध्यक्ष रहे। इसके साथ-साथ वो 1979 से 2006 तक इंस्टीट्‍यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट के अध्यक्ष भी रहे।

उनके जीवन से जुड़ी एक रोचक और दिलचस्प बात यह है कि भारत में ‘श्वेत क्रांति जनक और ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर यह शख्स खुद दूध नहीं पीता था। वह कहते थे, ‘‘मैं दूध नहीं पीता क्योंकि मुझे यह अच्छा नहीं लगता।’’

जाने-माने फिल्मकार श्याम बेनेगल ने ‘मंथन’ नामक एक फिल्म बनायीं जिसकी कहानी डॉ कुरियन के सहकारिता आंदोलन पर आधारित थी।

15 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानक उपदियां प्रदान किया।

एक संक्षिप्त बीमारी के बाद 9 सितंबर, 2012 को डॉ कुरियन का निधन गुजरात के आणंद के पास के नाडियाड कस्बे में हो गया। वह 90 साल के थे।

पुरस्कार और सम्मान

ग्रामीण जन और किसानों के जीवन में आर्थिक परिवर्तन लाने वाले डॉ कुरियन को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

  • भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।
  • सामुदायिक नेतृत्व के लिए उन्हें रैमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला।
  • कार्नेगी वटलर विश्व शांति पुरस्कार।
  • अमेरिका के इंटरनेशनल पर्सन ऑफ द ईयर सम्मान से भी नवाजा गया।
  • कृषि रत्न सम्मान
  • वर्ल्ड फ़ूड प्राइज