अन्नपूर्णा देवी

Annapurna Devi Biography in Hindi

जन्म: 23 अप्रैल, 1927 (मैहर, मध्य प्रदेश)

मृत्यु: 13 अक्टूबर 2018, मुंबई, भारत

पिता: अलाउद्दीन खान (मैहर घराना के संस्थापक)

माता: मदीना बेगम

भाई: अली अकबर खान

पति: रवि शंकर, रूशी कुमार पांड्या

कार्यक्षेत्र: भारतीय शास्त्रीय संगीत की विशेषज्ञ एवं सुरबहार (बास का सितार) की उस्ताद

प्रमुख शिष्य: हरिप्रसाद चौरसिया, निखिल बनर्जी, अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बरोत, सरस्वती शाह

अन्नपूर्णा देवी भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का सितार) बजाने  वाली एकमात्र महिला उस्ताद थीं. वह प्रख्यात संगीतकार अलाउद्दीन खान की बेटी और शिष्या थीं. इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे. यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था.

वर्ष 1950 के दशक में पंडित रवि शंकर और अन्नपूर्णा देवी युगल संगीतकार के रूप में अपनी प्रस्तुति देते रहे. इस दौरान इनकी ज़्यादातर प्रस्तुतियां अन्नपूर्णा देवी के भाई अली अकबर खान के संगीत विद्यालय में हुईं. लेकिन बाद में शंकर कार्यक्रमों के दौरान संगीत को लेकर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि दर्शक शंकर की अपेक्षा अन्नपूर्णा के लिए अधिक तालियाँ और उत्साह दिखाने लगे थे. इसके परिणाम स्वरूप अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति न देने का निश्चय कर लिया.

यद्यपि अन्नपूर्णा देवी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को कभी भी अपने पेशे के रूप में नहीं लिया और न ही कोई संगीत का एलबम ही बनाया, फिर भी इन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत से प्रेम करने वाले प्रत्येक भारतीय से पर्याप्त आदर और सम्मान मिला। प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर इनके पहले पति थे. पंडित रवि शंकर ने अन्नपूर्णा देवी के पिता, उस्ताद अलाउद्दीन खान, से संगीत की शिक्षा ली थी.

अन्नपूर्णा देवी
स्रोत: lotusbeats.wordpress.com

प्रारम्भिक जीवन

अन्नपूर्णा देवी (रोशनआरा खान) का जन्म चैत पूर्णिमा के 23 अप्रैल, 1927 को ब्रिटिश कालीन भारतीय राज्य मध्य क्षेत्र (वर्तमान- मध्य प्रदेश) के मैहर में हुआ था. इनके पिता का नाम अलाउद्दीन खान तथा माता का नाम मदनमंजरी देवी था. इनके एकमात्र भाई उस्ताद अली अकबर खान तथा तीन बहनें शारिजा, जहानारा और स्वयं अन्नपूर्णा (रोशनारा खान) थीं.

बड़ी बहन शारिजा का अल्पायु में ही निधन हो गया, दूसरी बहन जहानारा की शादी हुई परंतु उसकी सासु ने संगीत से द्वेषवश उसके तानपुरे को जला दिया. इस घटना से दु:खी होकर इनके पिता ने निश्चय किया कि वे अपनी छोटी बेटी (अन्नपूर्णा) को संगीत की शिक्षा नहीं देंगे. एक दिन जब इनके पिता घर वापस आये तो उन्होंने देखा कि अन्नपूर्णा अपने भाई अली अकबर खान को संगीत की शिक्षा दे रही है, इनकी यह कुशलता देखकर पिता का मन बदल गया. आगे चलकर अन्नपूर्णा ने शास्त्रीय संगीत, सितार और सुरबहार (बांस का सितार) बजाना अपने पिता से सिखा.

मैहर में इनके पिता अलाउद्दीन खान यहां के तत्कालीन महाराजा बृजनाथ सिंह के दरबारी संगीतकार थे. इनके पिता ने जब महाराजा बृजनाथ सिंह को दरबार में बेटी के जन्म के बारे में बताया तो महाराजा ने स्वयं ही नवजात लड़की का नाम ‘अन्नपूर्णा’ रख दिया.

पारिवारिक जीवन

अलाउद्दीन खान के अनेक शिष्यों में से एक रवि शंकर भी थे. उनका विवाह अन्नपूर्णा देवी से वर्ष 1941 में हो गया. उस समय रवि शंकर की उम्र 21 वर्ष और अन्नपूर्णा की उम्र मात्र 14 वर्ष थी. हालांकि रवि शंकर एक हिन्दू परिवार से थे जबकि अन्नपूर्णा मुस्लिम परिवार से परंतु इनके पिता को इस बात से कोई एतराज नहीं था. विवाह से ठीक पहले अन्नपूर्णा देवी ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था. विवाह के बाद अन्नपूर्णा देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम शुभेन्द्र शंकर था, जो आगे चलकर संगीतकार बने. मात्र 50 वर्ष की अवस्था में ही वर्ष 1992 में शुभेन्द्र का निधन हो गया. अपने पीछे वे तीन  बच्चे और पत्नी को छोड़ गए.

लगभग 21 वर्षों तक वैवाहिक जीवन एक साथ व्यतीत करने के बाद अन्नपूर्णा का रवि शंकर के साथ तलाक हो गया. इसके बाद इन्होंने कभी भी फिर से सार्वजनिक मंच पर अपने गायन-वादन का प्रस्तुतिकरण नहीं किया. ये मुंबई चली गईं और वहां पर एकाकी जीवन व्यतीत करने लगीं एवं संगीत का शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया.

वर्ष 1982 में इन्होंने अपने से 13 वर्ष छोटे रूशी कुमार पंड्या से पुन: विवाह कर लिया, जिनका वर्ष 2013 में निधन हो गया.

संगीत इनके परिवार के रग-रग में

अन्नपूर्णा देवी के पिता अलाउद्दीन खान मैहर महाराज के यहां स्वयं तो एक दरबारी संगीतकार थे ही. इनके चाचा फ़क़ीर अफ्ताबुद्दीन खान और अयेत अली खान अपने पैतृक जन्म स्थान (वर्तमान बांग्लादेश) के प्रसिद्ध संगीतकार थे. इनके भाई अली अकबर खान प्रसिद्ध और सम्मानित सरोद वादक थे, जिन्होंने भारत और अमेरिका में संगीत के अनेकों यादगार कार्यक्रमों में भाग लिया. इनके पूर्व पति और विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत के भारत तथा विश्व में सबसे बड़े संगीतकार माने जाते हैं. इनके एकमात्र पुत्र शुभेन्द्र शंकर (सुभो) सितार वादन में माहिर थे. सुभो ने सितार वादन में अपनी माता से गहन  प्रशिक्षण लिया था. बाद में सुभो को उनके पिता रवि शंकर संगीत में पारंगत करने के लिए अपने साथ लेकर अमेरिका चले गए. शुभेन्द्र शंकर ने भी भारतीय शास्त्रीय संगीतकार के रूप में देश-विदेश में अपनी प्रस्तुति दी.

भारतीय शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने में इनका योगदान

अन्नपूर्णा देवी अपने पिता से संगीत की गूढ़ शिक्षा लेने के कुछ वर्षों बाद ही मैहर घराने (स्कूल) की सुरबहार (बांस का सितार) वादन की एक बहुत ही प्रभावशाली संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं. परिणामत: इन्होंने अपने पिता के बहुत से संगीत शिष्यों को मार्गदर्शन देना प्रारम्भ कर दिया था, इनमें प्रमुख हैं- हरिप्रसाद चौरसिया, निखिल बनर्जी, अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बारोट और सस्वत्ति साहा (सितार वादक) और बहादुर खान. इन सभी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान अन्नपूर्णा देवी से ही प्राप्त किया.

इन्होंने आजीवन कोई म्यूजिक एल्बम नहीं बनाया. कहा जाता है कि उनके कुछ संगीत कार्यक्रमों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड कर लिया गया था, जो आजकल सुनने को मिल जाता है. इन्होंने हमेशा अपने को मिडिया के प्रचार-प्रसार से दूर रखा. अन्नपूर्णा देवी सदैव भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ आगे बढ़ाने के बारे में सोचती रहीं।

निधन

अन्नपूर्णा देवी का निधन 13 अक्टूबर 2018 को मुम्बई में हो गया. मृत्यु के समय उनकी आयु 91 वर्ष थी. जीवन के अंतिम वर्षों में उनके शिष्य, प्रसिद्ध बांसुरीवादक निखिल हल्दीपुर ने की.

पुरस्कार एवं सम्मान

  • वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा स्थापित ‘संगीत नाटक अकादमी’ ने इन्हें अपना (ज्वेल फेलो) घोषित किया.
  • वर्ष 1999 में इन्हें रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया.
  • वर्ष 1991 में इन्हें संगीत नाटक अकादमी द्वारा भारतीय संगीत कला को आगे बढ़ाने में विशेष योगदान के लिए अपने सर्वोच्च सम्मान ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ से नवाजा गया.
  • वर्ष 1977 में अन्नपूर्णा देवी को भारत सरकार ने अपने तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया.