देबू चौधरी

Pandit Debu Chaudhary Biography in Hindi

जन्म: 1935 (मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश)

मृत्यु: 1 मई 2021, दिल्ली, भारत

घराना: सेनिया घराना

पत्नी: मंजुश्री चौधरी

सम्मान: पद्मभूषण, पद्मश्री

कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक

शिक्षक/गुरु: श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान

पंडित देवब्रत चौधरी को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है. पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त संगीतकार थे और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के शिक्षक भी रह चुके थे. इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की. इन्हें ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया गया था.

पंडित देवब्रत चौधरी संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी थे. कुल मिलाकर इन्होंने छः पुस्तकें लिखी, आकाशवाणी की कई रिकॉर्डिंग हुईं, अनगिनत बंदिशें बनाई, उन्होंने कई नए राग भी बनाए। उन्होंने सन् 1993 में अपने गुरु के नाम पर एक संस्था बनाई जिसका नाम “मुस्ताक अली खान सेंटर फॉर कल्चर” है।

इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शोज, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी. ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक कहे जाते थे. पंडित देबू चौधरी संगीत-शिक्षण करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके थे. इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है. अपने जीवनकाल में इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए. वे इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी थे.

देबू चौधरी
स्रोत: www.thehindu.com

प्रारम्भिक एवं पारिवारिक जीवन

पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष 1935 में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था. इनके पिता विश्वेश्वर चौधरी एक व्यापारी थे और इनकी माता का नाम हीरेन बाला देवी था। इनका परिवार रामगोपालपुर में रहता था जो वर्तमान में बांग्लादेश का हिस्सा है।

इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था. उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था. इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1953 में हुआ था.

जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया. इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की.

दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद वे अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते थे.

शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य

इन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1982 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं.

दिल्ली विश्वविद्याल से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है. यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा.

संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण

इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की. ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की थी. ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से  24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया.

इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और दूसरी  अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया.

संगीत के प्रति इनका लगाव

पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने का विशेष चाव था, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया. इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे. विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था.

पंडित देबू चौधरी महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि. वे  17 फ्रेट के विशेषज्ञ थे, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं.

निधन

पंडित देबू चौधरी जी का निधन 1 मई 2021 को कोरोना वायरस से संक्रमित होने से हो गया. उनकी मृत्यु के ठीक छः दिन बाद 7 मई 2021 को उनके पुत्र, प्रतीक चौधरी, ने भी दिल्ली के तेग – बहादुर अस्पताल में अपनी अंतिम साँस ली। अपने पिता के सेवा करते हुए वे भी कोरोना से संक्रमित हो गए थे.

पुरस्कार एवं सम्मान

  • इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया गया था.
  • भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया गया था.
  • इन्हें एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय, ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’, खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से भी नवाजा गया.
  • भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया.
  • उन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया था.